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जीवन समृति के पथ पर असंग चलता है
ऊषा उस दिन मुसकाई थी
कुछ नई ज्योति खिल आई थी
चुपचाप नई लहरों की छवि
मानस में मौन समाई थी
संगीत नया गूँजा मन में
प्राणों के शतदल के वन में
स्वर-सौरभ में मधु सम्मोहन पलता है
कल्पना रूप धरकर आई
रूप में मोहनी भर लाई
भावस्थिर जननांतर सौहृद
वाणी निर्जन में लहराई
रमणीय रुप मधुगीत लहर
पर्युत्सुक मन में गए ठहर
पीड़ा का मधु क्षण-कुंतल में ढलता है
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